भौगोलिक विवरण - उत्तरांचल हिमालय पर्वत क्षेत्र के एक बड़े भाग में स्थित है। इस क्षेत्र की सीमायें चीन, तिब्बत एवं नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को छूती हैं। उत्तर प्रदेश की सभी छोटी-बड़ी नदियों का उद्गम इसी क्षेत्र से हुआ है। उत्तरांचल क्षेत्र में छोटी-छोटी पहाड़ियों से लेकर उँची पर्वत श्रंखलाये तक विद्यमान हैं। इनमें अधिकांश समय तक बर्फ से ढकी रहने वाली नन्दा देवी, त्रिशुल, केदारनाथ, नीलकंठ तथा चौखंभा पर्वत चोटियाँ हैं। परिस्थितकीय विभिन्नताओं के कारण इस क्षेत्र में भिन्न-भिन्न वनस्पतियाँ व जीव-जन्तु विद्यमान हैं। उत्तरांचल आन्दोलन - उत्तरांचल को अलग राज्य की मान्यता देने को लेकर उत्तरांचल आन्दोलन सन् १९५७ में प्रारंभ हुआ। उत्तरांचलवासियों की मांग है कि कई राज्य ऐसे हैं जिनका क्षेत्रफल और जनसंख्या प्रस्तावित उत्तरांतल राज्य से काफी कम है। इसके अतिरिक्त पहाड़ों का दुर्गम जीवन और पिछड़े होने की वजह से इस क्षेत्र का संपूर्ण विकास नहीं हो पा रहा है। अत: उत्तराखण्ड को उत्तर प्रदेश से अलग करके उसे सम्पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। हालांकि उत्तराखण्ड राज्य बनाये जाने के टिहरी के पूर्व नरेश मानवेन्द्र शाह के १९५७ के आन्दोलन से पूर्व ही १९५२ में कम्युनिस्ट नेता पी.सी. जोशी ने पर्वतीय क्षेत्र को स्वायता देने की सर्वप्रथम मांग रखी थी। १९६२ को चीन के साथ युद्ध के समय इस आन्दोलन को राष्ट्रहित में स्थगित कर दिया गया था, बाद में १९७९ में उत्तरांचल क्रान्ति दल (उक्रांद) का गठन मसूरी में हुआ, १२ वर्ष के आन्दोलन के बाद १२ आगस्त १९९१ को उत्तर प्रदेश की विधान सभा ने उत्तरांचल राज्य का प्रस्ताव पास कर केन्द्र सरकार की स्वीकृति के लिए भेजा गया। २४ आगस्त १९९४ को उत्तर प्रदेश विधान सभा में एक बार पुन: उत्तराखण्ड राज्य का प्रस्ताव पास करके केन्द्र सरकार को मंजूरी के लिए भेजा गया। उत्तर में हिमाच्छादित पर्वत श्रंखला, दक्षिण में दून और तराई-भाबर के घने जंगल, पूर्व में सदानीरा काली और पश्चिम में टोंस नदियों की भौगोलिक परिधि में स्थित उत्तरांचल नाम से ज्ञात मध्य हिमालय का प्रदेश एक सांस्कृतिक क्षेत्र माना जाता है। इस प्रान्त का नाम कूर्माचल या कुमाऊँ होने के विषय में यह किम्वदन्ती कुमाउँ के लोगों में प्रचलित है कि जब विष्णु भगवान् का दूसरा अवतार कूर्म अथवा कछुवे का हुआ, तो वह अवतार कहा जाता है कि चंपावती नदी के पूर्व कूर्म पर्वत में जिसे आजकल कांड़देव या कानदेव कहते हैं, ३ वर्ष तक खड़ा रहा। उस समय हाहा हूहू देवतागण तथा नारदादि मुनीश्वरों ने उसकी प्रशंसा की। उस कूर्म (कच्छप)-अवतार के चरणों का चिन्ह पत्थर में हो गया और वह अब तक विद्यमान होना कहा जाता है। तब से इस पर्वत का नाम कूर्माचल (कूर्मअअचल) हो गया। कूर्माचल का प्राकृत रुप बिगड़ते-बिगड़ते 'कूमू' बन गया और यही शब्द भाषा में 'कुमाऊँ' में परिवर्तित हो गया। पहले यह नाम चंपावत तथा उसके आसपास के गाँवों को दिया गया। तत्पश्चात काली नदी के किनारे के प्रान्त-चालसी, गुमदेश, रेगङू, गंगोल, खिलफती और उन्हीं से मिली हूई ध्यानिरौ आदि पट्टियाँ भी काली कुमाऊँ नाम से प्रसिद्ध हुई। ज्यों-ज्यों चंदों का राज्य-विस्तार बढ़ा, तो कूर्माचल उर्फ़े कुमाऊँ इस सारे प्रदेश का नाम हो गया। सब लोग में यही बात प्रचलित है कि कुमाऊँ का नाम कूर्मपर्वत के कारण पड़ा, पर ठा. जोधसिंह नेगीजी 'हिमालय-भ्रमण' में लिखते हैं - "कुमाऊँ के लोग खेती व धन कमाने में सिद्धहस्त हैं। वे बड़े कमाउ हैं, इससे इस देश का नाम कुमाउँ हुआ"। काली कुमाऊँ का नाम काली नदी के कारण नहीं, बल्कि कालू तड़ागी के नाम से पड़ा, जो किसी समय चम्पावत में राज्य करता था। इन तथ्यों को स्वीकार करना है कि किसी भू-प्रदेश का नाम किसी राजा के नाम से प्रचलित होना सार्वदेशिक नियम नहीं हैं। किसी प्रदेश या भूभाग का नाम किसी कारण से अधिक प्रसिद्ध होते हैं। देवदारु और बाँझ की घनी, काली झाड़ियों से भी इसका विशेषण 'काली' गया है। चंद राजाओं के समय ऐसा भी हमें मालूम हुआ है कि कुर्माचल में तीन शासन मंडल थे - १. काली कुमाऊँ जिसमें काली कुमाऊँ के अतिरिक्त सारे, सीरा अस्कोट भी शामिल थे। २. अल्मोड़ा - जिसमें सालम, बारामंडल पाली तथा नैनीताल के वर्तमान पहाड़ी इलाके थे। ३. तराऊ भावर का इलाका या माल। ये शासन मंडल उस समय थे, जब चंद-राज्य चरम सीमा को पहुँच गया था। कुमाऊँ को हूणदेश वाले 'क्युनन' अँग्रेज 'कमाऊन' (कहसोदल), देशी लोग 'कमायूं' यहाँ को रहने वाले 'कुमाऊँ' और संस्कृतज्ञ 'कूर्माचल' कहते हैं। खास काली कुमाऊँ में चंपावत का नाम 'कुमू' कहा जाता है। वहाँ अब भी लोग चंपावत को 'कुमू' कहते है। |
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सोमवार, 30 अगस्त 2010
भौगोलिक विवरण उत्तरांचल आन्दोलन
उत्तरांचल एक परिचय
उत्तर प्रदेश से अलग किये गये नए प्रांत उत्तरांचल ८ नवम्बर २००० को अस्तित्व में आया। इस राज्य की राजधानी देहरादून है। उत्तरांचल अपनी भौगोलिक स्थिता, जलवायु, नैसर्गिक, प्राकृतिक दृश्यों एवं संसाधनों की प्रचुरता के कारण देश में प्रमुख स्थान रखता है। उत्तरांचल राज्य तीर्थ यात्रा और पर्यटन की दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। यहाँ चारों धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमनोत्री और गंगोत्री हैं। इस चार धाम यात्रा मार्ग पर कई दर्शनीय स्थल हैं। पंचप्रयाग के नाम से प्रसिद्ध पाँच अत्यन्त पवित्र संगम स्थल यहीं स्थित है। ये हैं विष्णु, प्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग व देवप्रयाग। इसके अलावा सिक्खों के तीर्थस्थल के रुप में हेमकुण्ड साहिब भी विशेष रुप से महत्वपूर्ण है।
उत्तरांचल
जिले - १३
|
सोमवार, 19 जुलाई 2010
इतिहासिक उत्तरांचल का गठन
उत्तरांचल का गठन (The UP Reorganisation Act, 2000) के अनुसारः
स्कन्द पुराण में हिमालय को पॉच भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त किया गया है:-
खण्डाः पत्र्च हिमालयस्य कथिताः नैपालकूमाँचंलौ ।
केदारोऽथ जालन्धरोऽथ रूचिर काश्मीर संज्ञोऽन्तिमः ।।
अर्थात हिमालय क्षेत्र में नेपाल ,कुर्मांचल , केदारखण्ड़ (गढवाल), जालन्धर ( हिमाचल प्रदेश ) और सुरम्य काश्मीर पॉच खण्ड है।
पौराणिक ग्रन्थों में कुर्मांचल क्षेत्र मानसखण्ड के नाम से प्रसिद्व था। पौराणिक ग्रन्थों में उत्तरीय हिमालय में सिद्ध गन्धर्व, यक्ष, किन्नर जातियों की सृष्टि और इस सृष्टि का राजा कुबेर बताया गया हैं। कुबेर की राजधानी अलकापुरी ( बदीनाथ से ऊपर) बताई जाती है। पुराणों के अनुसार राजा कुबेर के राज्य में आश्रम में ऋषि -मुनि तप व साधना करते थे।
अंग्रेज इतिहास कारों के अनुसार हुण, सकास, नाग खश आदि जातियां भी हिमालय क्षेत्र में निवास करती थी। किन्तु पौराणिक ग्रन्थों में केदार खण्ड व मानस खण्ड के नाम से इस क्षेत्र का व्यापक उल्लेख है। इस क्षेत्र को देव-भूमि व तपोभूमि माना गया है। मानस खण्ड का कुर्मांचल व कुमाऊं नाम चन्द राजाओं के शासन काल में प्रचलित हुआ।कुर्मांचल पर चन्द राजाओं का शासन कत्यूरियों के बाद प्रारम्भ होकर सन 1790 तक रहा। सन 1790 में नेपाल की गोरखा सेना ने कुमाऊं पर आक्रमण कर कुमाऊ राज्य को अपने आधीन कर दिया। गोरखाओं का कुमाऊं पर सन 1790 से 1815 तक शासन रहा। सन 1815 में अंग्रजो से अन्तिम बार परास्त होने के उपरान्त गोरखा सेना नेपाल वापिस चली गई किन्तु अंग्रजों ने कुमाऊं का शासन चन्द राजाओं को न देकर कुमाऊं को ईस्ट इण्ड़िया कम्पनी के अधीन कर किया। इस प्रकार कुमाऊं पर अंग्रेजो का शासन 1815 से प्रारम्भ हुआ।
ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार केदार खण्ड कई गढों( किले ) में विभक्त था। इन गढों के अलग राजा थे और राजाओं का अपने-अपने आधिपत्य वाले क्षेत्र पर साम्राज्य था। इतिहासकारों के अनुसार पंवार वंश के राजा ने इन गढो को अपने अधीनकर एकीकृत गढवाल राज्य की स्थापना की और श्रीनगर को अपनी राजधानी बनाया। केदार खण्ड का गढवाल नाम तभी प्रचलित हुआ। सन 1803 में नेपाल की गोरखा सेना ने गढवाल राज्य पर आक्रमण कर गढवाल राज्य को अपने अधीन कर लिया ।महाराजा गढवाल ने नेपाल की गोरखा सेना के अधिपत्य से राज्य को मुक्त कराने के लिए अंग्रजो से सहायता मांगी । अग्रेज सेना ने नेपाल की गोरखा सेना को देहरादून के समीप सन 1815 में अन्तिम रूप से परास्त कर दिया । किन्तु गढवाल के तत्कालीन महाराजा द्वारा युद्ध व्यय की निर्धारित धनराशि का भुगतान करने में असमर्थता व्यक्त करने के कारण अंग्रजो ने सम्पूर्ण गढवाल राज्य गढवाल को न सौप कर अलकनन्दा मन्दाकिनी के पूर्व का भाग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन में शामिल कर गढवाल के महाराजा को केवल टिहरी जिले ( वर्तमान उत्तरकाशी सहित ) का भू-भाग वापिस किया।गढवाल के तत्कालीन महाराजा सुदर्शन शाह ने 28 दिसम्बर 1815 को टिहरी नाम के स्थान पर जो भागीरथी और मिलंगना के संगम पर छोटा सा गॉव था, अपनी राजधानी स्थापित की। कुछ वर्षों के उपरान्त उनके उत्तराधिकारी महाराजा नरेन्द्र शाह ने ओड़ाथली नामक स्थान पर नरेन्द्र नगर नाम से दूसरी राजधानी स्थापित की । सन1815 से देहरादून व पौडी गढवाल ( वर्तमान चमोली जिलो व रूद्र प्रयाग जिले की अगस्तमुनि व ऊखीमठ विकास खण्ड सहित) अंग्रेजो के अधीन व टिहरी गढवाल महाराजा टिहरी के अधीन हुआ।
भारतीय गणतंन्त्र में टिहरी राज्य का विलय अगस्त 1949 में हुआ और टिहरी को तत्कालीन संयुक्तप्रान्त का एक जिला घोषित किया गया। भारत व चीन युद्व की पृष्ठ भूमि में सीमान्त क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से सन 1960 में तीन सीमान्त जिले उत्तरकाशी, चमोली व पिथौरागढ़ का गठन किया गया ।
एक नये राज्य के रुप में उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के फलस्वरुप (THE UP REORGANISATION ACT, 2000) उत्तरांचल की स्थापना दि० 9 नवम्बर 2000 को हुई।
सन 1969 तक देहरादून को छोडकर उत्तराखण्ड के सभी जिले कुमाऊं कमिश्नरी के अधीन थे। सन 1969 में गढवाल कमिश्नरी की स्थापना की गई जिसका मुख्यालय पौडी बनाया गया । सन 1975 में देहरादून जिले को जो मेरठ कमिश्नरी में शामिल था, गढवाल मण्डल में शामिल करने के उपरान्त गढवाल मण्डल में जिलों की संख्या पॉच हो गयी थी जबकि कुमाऊं मण्डल में नैनीताल , अल्मोडा , पिथौरागढ , तीन जिले शामिल थे। सन 1994 में उधमसिह नगर और सन 1997 में रूद्रप्रयाग , चम्पावत व बागेश्वर जिलों का गठन होने पर उत्तराखण्ड राज्य गठन से पूर्व गढवाल और कुमाऊ मण्डलों में क्रमश छः छः जिले शामिल थे। उत्तराखण्ड राज्य में हरिद्वार जनपद के सम्मिलित किये जाने पर राज्य के गठन उपरान्त गढवाल मण्ढल में सात और कुमाऊं मण्डल में छः जिले शामिल हैं। दिनांक 01 जनवरी 2007 से राज्य का नाम उत्तरांचल से बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया है। राज्य का स्थापना दिवस 9 नवम्बर को मनाया जाता है।
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